|रचनाकार=नोमान शौक़
}}
[[Category:नज़्म]]
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मैं नहीं चाहता
कोई झरने के संगीत सा
मेरी हर तान सुनता रहे
एक ऊंची पहाड़ी प' बैठा हुआ
सिर को धुनता रहे।
मैं नहीं चाहता<br />अबकोई झरने के संगीत सा<br />मेरी हर तान सुनता रहे<br /> झुंझलाहट का पुर-शोर सैलाब हूँक़स्ब:-व-शहर को एक ऊंची पहाड़ी प' बैठा हुआ<br /> गहरे समुन्दरसिर को धुनता रहे।<br />में ग़र्क़ाब करने के दर पै हूँ।
मैं अब<br /> नहीं चाहताझुंझलाहट का पुर-शोर सैलाब हूँ<br />क़स्ब:-व-शहर मेरी चीख़ को एक गहरे समुन्दर<br /> शायरी जानकरमें ग़र्क़ाब करने क़द्रदानों के दर पै हूँ।<br />मजमे में ताली बजेवाहवाही मिलेऔर मैं अपनी मसनद प' बैठा हुआपान खाता रहूँमुस्कुराता रहूँ।
मैं नहीं चाहता<br />मेरी चीख़ को शायरी जानकर<br />कटे बाज़ुओं से मिरेक़द्रदानों के मजमे में ताली बजे<br />क़तरा क़तरा टपकते हुए वाहवाही मिले<br />सुर्ख़ सैयाल मे कीमिया घोलकरऔर मैं अपनी मसनद प' बैठा हुआ<br />एक ख़ुशरंग पैकर बनाएपान खाता रहूँं<br />रऊनत का मारा मुसव्विर कोईमुस्कुराता रहूँ।<br />और ख़ुदाई का दावा करे।
मैं नहीं चाहता<br />इक ज़माने तलककटे बाज़ुओं से मिरे<br />अपने जैसों के कांधों पे'क़तरा क़तरा टपकते हुए <br />सिर रखके रोते रहेसुर्ख़ सैयाल मे कीमिया घोलकर<br />मैं भी और मेरे अजदाद भीएक ख़ुशरंग पैकर बनाए<br />अपने कानों में ही सिसकियाँ भरते-भरतेरऊनत का मारा मुसव्विर कोई<br />मैं तंग आ चुकाऔर ख़ुदाई का दावा करे।<br />बस -
इक ज़माने तलक<br />अपने जैसों के कांधों पे'<br />हिस्से का ज़हरसिर रखके रोते रहे<br />मैं अब मुख़ातिब की शह-रग में भी और मेरे अजदाद भी<br />अपने कानों में ही सिसकियाँ भरते-भरते<br />दौड़ता, शोर करता हुआमैं तंग आ चुका<br />बस -<br />देखना चाहता हूँ।
अपने हिस्से का ज़हर<br />अब मुख़ातिब की शह-रग में भी<br />दौड़ता, शोर करता हुआ<br />देखना चाहता हूँ।<br /> मैं नहीं चाहता<br />गालियां दूँ किसी को<br />तो वह मुस्कुरा कर कहे -'मरहबा'<br />मुझे इतनी मीठी जुबाँ की<br />ज़रुरत नहीं।<br /poem>