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कहते थे "मौन उषा गवाक्ष से प्राण! झांकता सविता हो / प्रेम नारायण 'पंकिल'
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13:13, 16 अगस्त 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=प्रेम नारायण 'पंकिल'
|संग्रह=
बावरिया बरसाने वाली /प्रेम नारायण 'पंकिल'
}}
[[Category:
कविता
छंद
]]
<poem>
कहते थे "मौन उषा गवाक्ष से प्राण! झांकता सविता हो।
परिरंभण-व्याकुल युगल बाहु की अथवा तन्मय कविता हो।
Shrddha
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