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बहेलिये / सरोज परमार

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|रचनाकार=सरोज परमार
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[[Category:कविता]]
<poem>उत्तर से दक्षिण
पूर्व से पश्चिम
बहेलिये ही बहेलिये।
तोतामार,चिड़ीमार,
बटेरमार,तीतरमार
पर हैं सब बहेलिये।
समय समय पर
हाथ जोड़ कर
घिघिया कर
कनस्तर पीट कर
रिकॉर्ड बजाकर
भाषणों का जाल बिछाते हैं
हितैषी,राष्ट्रभक्त
अधिकारों का रक्षक
अपने मस्तक पर लिखकर
बोतलों,खनकते रुपयों का
दाना डालते हैं।
जिसके झाबे में जितने अधिक पक्षी
वह उतना ही महान बहेलिया ।
(चाहे वह पक्षी चुराए
अधिक बोतलें दिखाकर रिझाए
तोड़े,फोड़े,दल बदलवाए
बटेर से तीतर
तीतर से तोता
तोते से चिड़िया
चिड़िया से कबूतर
या फिर जाली पक्षी बनाए।
इससे कोई अंतर नहीं पड़ता
श्री श्री 108 बहेलिया नेता लूटानचन्द को ।
पक्षियों के बल पर ही तो वह नेता है
अपने ही जैसे बहेलियों चोरानन्द
घूसानन्द,बीएमानलाल का चहेता है।)
जिसके झाबे में जितने अधिक पक्षी
वह उतना ही बड़ा बहेलिया ।
बस तरीके,बेतरीके
और किसी भी तरीके से
पक्षी फँसाओ
उन्हें भाषण वंशी पर नचाओ ।
आश्वासनों का गीत सुनाओ
मुद्दों को उछलवाओ,
लड़वाओ,कटवाओ
नारों से जोश दिलाओ
थोड़ा खिलाओ,ज़्यादा खाओ
उन्हें थका माँदा छोड़
अपना काम बनाओ ।
राजघाट पर सौगन्ध खाओ
और फिर
पक्षियों की अस्मत बेच आओ।
</poem>
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