Changes

अल्हड़ चीड़ / सरोज परमार

1,555 bytes added, 21:56, 21 अगस्त 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज परमार |संग्रह= घर सुख और आदमी / सरोज परमार }} [[C...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सरोज परमार
|संग्रह= घर सुख और आदमी / सरोज परमार
}}
[[Category:कविता]]
<poem>सर्द खामोशी में
दीवाना हुआ जाता रे
अल्हड़ चीड़ ।
छुअन ज़रा सी हवा की
लगा झूम-झूम मचलने
सज बन तुहिन चकतों से
लगा कँपने सिहरने
झिरी से कसमसाने लगा रे
अल्हड़ चीड़।
बड़ा सहज है
झेल नहीं पाता उफान
आतंकित नहीं कर पाई
कोई भी ऊँचाई
छल नहीं पाया
किसी का बौनापन।
कितना खुलापन रे
अल्हड़ चीड़ !
छनी छनी सी धूप
फिसली गिरती सी छाया
गुंजित पल पल अनहदनाद
अर्हनिश जंगल भरमाया
कब यह जोग धराया ने ?
अल्हड़ चीड़ ।
बदली तेरा माथा चूमें
हिममुक्ता केश संवारे
चिलगोज़ों के कलश उठाए
मिलनातुर तू बाँह पसारे ।
भव्य बने तेरे नखरे रे
अल्हड़ चीड़ ।
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits