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हथेली पे उगा सच..... / हरकीरत हकीर
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05:02, 22 अगस्त 2009
|रचनाकार=हरकीरत हकीर
}}
{{KKCatNazm}}
<poem>फ़िर एक गीला शब्द
हथेली पे
अकस्मात उग आया है
मैं हिम शिखरों की ओर
इशारा करती हूँ
शफ्फाफ़
शफ्फाक़
हवाएं
चीड़ की गंध लिए
मुझे हैरानी से
सामने .....
सच खड़ा है
मुंह
चिढ़ता
चिढ़ाता
हुआ
और मैं राख़ हुई
पत्थर सी
जड़ हो जाती हूँ .......!!</poem>
Shrddha
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