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19:52, 22 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केशव
|संग्रह=अलगाव / केशव
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>आप चलते हुए गिर जाओ
ठोकर खाकर
बुरा तो लगता है
अच्छा लगता है
जब उठ कर चलने लगो।
अच्छा नहीं लगता
साजिश के तहत गिराया जाना।
आप न हों शामिल
किसी समारोह में
अच्छा लगता है
नहीं लगता
शामिल न किया जाना
जानबूझ कर।
अच्छा लगता
हँसना मुस्कुराना
नहीं लगता
हँसना मुसकराना
नहीं लगता
जब कोई हँसे बस देख कर।
और भी बुरा लगता
आप शामिल हों हँसी-खुशी में
आप नाचें गाएं या मौज मनाएं
पता चले बाद में
यह सब था तहत
एक साजिश के।</poem>