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|संग्रह=गुले-नग़मा / फ़िराक़ गोरखपुरी
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{{KKCatGhazal}}[[Category:गज़ल]]
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आँखों में जो बात हो गयी है
देखा है तो ज़ात हो गयी है।
शरहे-हयात = जीवन की व्याख्या, तस्वीरे-हयात = जीवन का चित्र, निकात = मर्म, इक़रारे-गुनाहे-इश्क़ = इश्क़ के गुनाह का इक़रार, बसर = मानव, कद्रें = मूल्यों, नजात = मुक्ति, बर्क़-सिफ़ात = बिजली की विशेषता रखने वाली, बर्गे-नबात = हरी डाली, जिन्दाँ = कारागार।
</poem>
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