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ये सुरमई फ़ज़ाओं की कुछ कुनमुनाहटें / फ़िराक़ गोरखपुरी
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18:12, 23 अगस्त 2009
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ये सुरमई फ़ज़ाओं की कुछ
कुनमनाहटें
कुनमुनाहटें
मिलती हैं मुझको पिछले पहर तेरी आहटें।
चश्मे -सियह तबस्सुमे-पिनहाँ लिये हुये
पौ फूटने से पहले उफ़ुक़ की उदाहटें।
</poem>
Amitabh
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