अपनों ने ताज तज दिया हैं तो गैरों मैं जा के बैठ
ऐ खानमा खराब न तनहा शराब पी
बदल बादल गरज रहा था इधर, मोह्तासीब उधर
फिर जब तलक ये उकदा , न सुलझा, शराब पी
ऐ तू के तेरे दर पे हैं रिन्दों के जमघटे
एक इक रोज़ इस फ़कीर के घर आ, शराब पी
दो जम जाम उनके नाम भी ऐ-पीरे-मैकदा
जिन रफ्तागा के साथ हमेशा शराब पी