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{{KKRachna
|रचनाकार=साग़र सिद्दीकी
|संग्रह=
}}
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<poem>
रूदाद-ए-मुहब्बत<ref>प्यार की दास्तान</ref> क्या कहिये कुछ याद रही कुछ भूल गये
दो दिन की मसर्रत<ref>ख़ुशी</ref> क्या कहिये कुछ याद रही कुछ भूल गये

जब जाम दिया था साक़ी ने जब दौर चला था महफ़िल में
वो होश की स'अत<ref>पल</ref> क्या कहिये कुछ याद रही कुछ भूल गये

एहसास के मैख़ाने में कहाँ अब फ़िक्र-ओ-नज़र<ref>नज़रिया</ref> की क़न्दीलें<ref>मोमबत्तियाँ, लैम्प</ref>
अलम<ref>दुख</ref> की शिद्दत<ref>गहराई</ref> क्या कहिये कुछ याद रही कुछ भूल गये

अब अपनी हक़ीक़त भी "साग़र" बेरब्त कहानी लगती है
दुनिया की हक़ीक़त क्या कहिये कुछ याद रही कुछ भूल गये
</poem>