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प्रेम में कवि / सत्यपाल सहगल

No change in size, 12:34, 28 अगस्त 2009
<poem>उसे ऐसे छुओ
जैसे तुम उतारते हो पट्टी ज़ख़्म से
ब्यान ध्यान से उसे छुओ
वह सुबह की झील के पानी की तरह
हल्का-हल्का हिल रहा है
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