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ऐतिहासिक / सत्यपाल सहगल

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|रचनाकार=सत्यपाल सहगल
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}}
<poem>कुछ देर में सब कुछ नेपथ्य में चला जाएगा
एक वीरानी बचेगी आवाज़ों का इंतज़ार करती हुई
एक खामोशी होगी अपने आप में बड़बड़ाती हुई
कुछ देर में एक दिन शुरू होगा रात का
वह एक दूसरी दुनिया है जिसमें कभी कोई नहीं आता
अभी उसे छू कर गई है एक कार
सुबह आवाज़ों के रेले न ही उसे खोजने आयेंगे,न ही पायेंगे उसके
चिन्ह
फिर उस दिन की शुरूआत होगी
जिसे हम दिन कहते हैं
जिसे हम नितने हैं भी ओर नहीं भी
हम अपनी शुरूआत करेंगे
बिना इस स्मृति के कार किसे,कब छूकर गयी थी
इस तरह से बढ़ती है हमारी स्मृतिहीन आरंभ
इस तरह से बढ-अती है हमारी म्मृतिहीन गति
इस तरह से हम खड़ा करते हैं एक ढेर
जिसे इतिहास अकेले उठाता है</poem>
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