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एक शबे-ग़म वो भी थी जिसमें जी भर आये तो अश्क़ बहायें / फ़िराक़ गोरखपुरी
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18:17, 29 अगस्त 2009
शब्दार्थ
१- सृष्टि, २- कुँवारी, ३- यात्रा-साथी, ४- प्रकृति-कवि।
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Amitabh
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