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19:02, 29 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
|संग्रह=गुले-नग़मा / फ़िराक़ गोरखपुरी
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<poem>
बन्दगी से कभी नहीं मिलती
इस तरह ज़िन्दगी नहीं मिलती।
लेने से ताज़ो-तख़्त मिलता है
मागे से भीख भी नहीं मिलती।
ग़ैबदां है मगर ख़ुदा को भी
नीयते-आदमी नहीं मिलती।
वो जो इक चीज दारे-फ़ानी१ में
वो तो जन्नत में भी नहीं मिलती।
एक दुनिया है मेरी नज़रों में
पर वो दुनिया अभी नहीं मिलती।
रात मिलती है तेरी जु्फ़ों में
पर वो आरास्तगी नहीं मिलती।
यूँ तो हर इक का हुस्न काफ़िर है
पर तेरी काफ़िरी नहीं मिलती।
बासफ़ा१ दोस्ती को क्या रोयें
बासफ़ा दुश्मनी नहीं मिलती।
आँख ही आँख है मगर मुझसे
नरगिसे-सामरी नहीं मिलती।
जब तक ऊँची न हो जमीर की लौ
आँख को रौशनी नहीं मिलती।
सोज़े-ग़म से न हो जो मालामाल
दिल को सच्ची खुशी नहीं मिलती।
रू - ए - जानाँ, कुजा३ गुले-ख़ुल्द
वो तरो-ताज़गी नहीं मिलती।
तुझमें कोई कमी नहीं पाते
तुझमें कोई कमी नहीं मिलती।
है सिवा मेरे और नर्म नवा
पर वो आहिस्तगी नहीं मिलती।
यूँ तो पड़ती है एक आलम पर
निगहे-सरसरी नहीं मिलती।
सहने-आलम की सरज़मीनों में
दिल की उफ़्तादगी४ नहीं मिलती।
आह वो मुशकबेज़५ जुल्फ़े-सियाह
जिसकी हमसायगी नहीं मिलती।
इश्के़-आज़ुर्दा६ बादशाहों को
तेरी आज़ुर्दगी नहीं मिलती।
ज़ुहदो-सौमो-सलातो-तक़वा७ से
इश्क़ की सादगी नहीं मिलती।
हुस्न जिसका भी है निराला है
पर तेरी तुर्फ़गी८ नहीं मिलती।
रंगे-दीवानगी-ए-आलम से
मेरी दीवानगी नहीं मिलती।
इल्म है दस्तियाब९ बाइफ़रात
इश्क़ की आगही नहीं मिलती।
दिल को बेइन्तेहा - ए- आगाही१०
इश्क़ की बेख़ुदी नहीं मिलती।
आज रुतबुल्लेसाँ हैं हज़रते-दिल
आपकी बात ही नहीं मिलती।
दोस्तो, महज़ तब्आ - ए - मौज़ूँ से
दौलते - शाएरी नहीं मिलती।
है जो उन रसमसाते होंटों में
आँख को वो नमी नहीं मिलती।
निगहे - लुत्फ़ से जो मिलती है
हाय वो जिन्दगी नहीं मिलती।
यूँ तो मिलन को मिल गया है ख़ुदा
पर तेरी दोस्ती नहीं मिलती।
मेरी आवाज़ में जो मुज़मर११ है
ऐसी शादी-ग़मी नहीं मिलती।
वो तो कोई ख़ुशी नहीं जिसमें
दर्द की चाशनी नहीं मिलती।
मेरे अशआर में सिरे से नदीम
रुजअते - क़हक़री नहीं मिलती।
बस वो भरपूर जिन्दगी है ’फ़िराक़’
जिसमें आसूदगी नहीं मिलती।
शब्दार्थः
१- नाश होने वाली जगह, संसार, २- सच्ची, अंतरात्मा, ३- कहाँ, ४- कमजोरी, ५- ख़ुशबूदार, ६- दुखी प्रेम, ७- परहेज़गारी, रोज़ा व नमाज़ व बुरी बातों से बचना, ८- अनोखापन, ९- प्राप्त, १०- अपार ज्ञान, ११- निहित।
</poem>