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|रचनाकार=खुमार ख़ुमार बाराबंकवी
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मुझ को नदामत है तुझ से शिकवा नहीं
तूने तौबा तो कर ली मगर ऐ 'खुमार ख़ुमार'
तुझ को रहमत पर शायद भरोसा नहीं
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