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19:07, 31 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ
|संग्रह=अनकहा / सुदर्शन वशिष्ठ
}}
<poem>बदलती है सत्ता बदलती हैं टोपियाँ
दिखती हैं एक समय एक रंग की टोपियाँ
बदलती है सत्ता
मुँड वही रहते हैं
बदलती है बस टोपियाँ ही टोपियाँ
आदमी की पहचान
आदमी नहीं मुँड है
मुँड की पहचान
मस्तक नहीं टोपी है।
नहीं रहते नंगे सिर सत्ताधारी
नहीं रहते नंगे सिर मुंडूदरबारी
सिर छिपाने के लिए पहनते हैं टोपियाँ
फिर-फिर बदलते हैं टोपियाँ।
अरज की हैः
जिन्हें नहीं था मोह अपनी गरदनों का
वे तो पागल छातियाँ छिदवा गये हैं
बचे हुओ का इतिहास कोई है नहीं
पेट का भूगोल ही बस रह गए हैं
रह गए बन के जो बस आंदाज़े बयाँ
उजली-उजली टोपियाँ सिलवा गये हैं। </poem>