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{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ
|संग्रह=अनकहा / सुदर्शन वशिष्ठ
}}
<poem>औरतें जानती हैं
अतिथि का सत्कार
जानती हैं
अतिथि का सत्कार
जानती हैं
अतिथि के संसकार
खाना खिलाती बार
पहचानती हैं
अतिथि की नज़र।

किस सलीके से
कैसा और कितना खाया
कितनी खाई सब्ज़ी या चपाती
गड़प से नीचे उतारा
या स्वाद लगा-लगा कर छाया
अन्न पर बैठ नकल निकाली
क्या चुपचाप खाया सब बिना नमक
क्या हाथ धोए खाने से पहले
उँगलियाँ चाटीं खाने के बाद
कितना छोड़ा जूठा
क्या प्रभु स्मरण किया परसाद लगाया
या रखा कोए-कुत्ते को ग्रास
भूखे होते हुए पहले इन्कार किया
या भरे पेट और इकारा।

कैसे बैठा अतिथि
कैसे उठा
कैसे बतियाया
कहाँ दौड़ाई नज़र।
कैसे सोया कब उठा।
इस सब से जान लेती हैं औरतें
सत्कार से पहले
अतिथि के संस्कार।</poem>
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