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प्रतीक्षा / मनोज कुमार झा

1 byte added, 17:22, 4 सितम्बर 2009
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देह छूकर कहा तूने
 
हम साथ पार करेंगे हर जंगल
 मैं अब भी खडा हूं हूँ वहीं पीपल के नीचे जहां जहाँ कोयल के कंठ में कांपता काँपता है पत्‍तों पत्तों का पानी।</poem>
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