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शिलालेख / मनोज कुमार झा
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,
17:25, 4 सितम्बर 2009
पोंछते हैं भीगी कोर
और बढ़ जाते हैं नून-तेल-
लकडी
लकड़ी
की
तरफ।
तरफ़।
</poem>
अनिल जनविजय
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