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आपका अनुरोध

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तन मन धन जीवन से<br>
हम करें राष्ट्र आराधन<br><br>
 
 
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'''भारत-भारती''' की इन कविताओं को जोड़ने का कष्ट करें।
 
-- अनुनाद
 
१। मानस भवन में आर्य जन
 
जिसकी उतारें आरती
 
भगवान भारतवर्ष में
 
गूँजे हमारी भारती|
 
हो भव्य भावोद्भाविनी
 
ये भारती हे भगवते
 
सीतापते, सीतापते
 
गीतामते, गीतामते।
 
 
२। हम कौन थे क्या हो गए हैं
 
और क्या होंगे अभी
 
आओ बिचारें आज मिल कर
 
ये समस्याएं सभी।
 
 
३। केवल पतंग विहंगमों में
 
जलचरों में नाव ही
 
बस भोजनार्थ चतुष्पदों में
 
चारपाई बच रही।
 
 
४। श्रीमान शिक्षा दें अगर
 
तो श्रीमती कहतीं यही
 
छेड़ो न लल्ला को हमारे
 
नौकरी करनी नहीं।
 
शिक्षे, तुम्हारा नाश हो
 
तुम नौकरी के हित बनी।
 
लो, मूर्खते जीवित रहो
 
रक्षक तुम्हारे हैं धनी।
 
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अब तो उठो, हे बंधुओं! निज देश की जय बोल दो;
 
बनने लगें सब वस्तुएं, कल-कारखाने खोल दो।
 
जावे यहां से और कच्चा माल अब बाहर नहीं -
 
हो 'मेड इन' के बाद बस 'इण्डिया' ही सब कहीं।'
 
भारत-भारती, भ.खण्ड 80, पृ. 154
 
 
श्री गोखले गांधी-सदृश नेता महा मतिमान है,
 
वक्ता विजय-घोषक हमारे श्री सुरेन्द्र समान है।
 
भारत-भारती, भविष्य खण्ड 128, पृ.163
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