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निद्रा का यों त्याग किये।
राज्यभोग के योग्य विपिन में,
बैता बैठा आज विराग लिये।
बना हुआ है प्रहरी जिसका,
उस कुटीर में क्या धन है।
जिसकी सेवा में रत इसका,
तन है, मन है, जीवन है।
 
म्रित्युलोक मालिन्य मेटने,
स्वामि संग जो आयी हैं।
तीन लोक की लक्श्मी ने,
यह कुटी आज अपनाई है।
 
</poem>
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