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यह कुटी आज अपनाई है।
 
और आर्य को राज्य भर को,
वे प्रजार्थ ही धारेंगें।
व्यस्त रहेंगें हम सब को भी,
मानो विवश विसारेंगें।
कर विचार लोकोपकार का,
हमें न इससे होगा शोक।
पर अपना हित आप नहीं क्या,
कर सकता है यह नरलोक।
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