निर्माण कर रहे सृजनव्यस्त!<br><br>
बढते बढ़ते ही जाते दिग्विजयी!<br>गढते गढ़ते तुम अपना रामराज,<br>
आत्माहुति के मणिमाणिक से<br>
मढते मढ़ते जननी का स्वर्णताज!<br><br>
तुम कालचक्र के रक्त सने<br>
किसने आकर यह किया त्राण?<br><br>
दृढ चरण, सुदढ़ सुदृढ़ करसंपुट से<br>
तुम कालचक्र की चाल रोक,<br>
नित महाकाल की छाती पर<br>