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भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला।।१२१।<br><br>
मतवालापन हाला से ले लेकर मैंने तज दी है हाला,<br>
पागलपन लेकर प्याले से, मैंने त्याग दिया प्याला,<br>
साकी से मिल, साकी में मिल , अपनापन मैं भूल गया,<br>
मिल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला।।१२२।<br><br>
मदिरालय के द्वार ठोकता किस्मत का छंछा छूंछा प्याला,<br>
गहरी, ठंडी सांसें भर भर कहता था हर मतवाला,<br>
कितनी थोड़ी सी यौवन की हाला, हा, मैं पी पाया!<br>
जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला,<br>
जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है,<br>
जितना ही हो जो रिसक, उसे है उतनी रसमय मधुशाला।।१२८।<br><br>
जिन अधरों को छुए, बना दे मस्त उन्हें मेरी हाला,<br>
बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला,<br>
किलत कलित कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,<br>
मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,<br>
विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।।१३५।<br><br>
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