गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
है चाहता बस मन तुम्हें / कृष्ण शलभ
364 bytes added
,
18:26, 11 सितम्बर 2009
है चाहता बस मन तुम्हें
संझा हुई सपने जगे
बाती जगी दीपक जला
टूटे बदन घेरे मदन
है चक्र रतिरथ का चला
कितने गिनाऊँ उद्धरण
सब कुछ यहाँ बस तुम नहीं
है चाहता बस मन तुम्हें
</poem>
Dkspoet
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,164
edits