488 bytes added,
10:32, 12 सितम्बर 2009
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
}}
<poem>
आके क़ासिद ने कहा जो, वही अकसर निकला।
नामाबर समझे थे हम, वह तो पयम्बर निकला॥
बाएगुरबत कि हुइ जिसके लिए खाना-खराब।
सुनके आवाज़ भी घर से न वह बाहर निकला॥
</poem>