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10:44, 12 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=मनखान आएगा /अवतार एनगिल
}}
<poem>
जँगल में आग लगी शोर मचा है
और आँखें मलता
लँगड़ा राजा
उठ बैठा है....
उसके नन्हें खरगोश का क्या होगा
टूटे बाँस की लाठी फटारता
कुहराम की दिशा सूंघता
लँगड़ा राजा
घाटी की भगदड़ में
भागता-उतरता
भागता चला जाता है
होशियार !
खबरदार !
बचना भाई !
कि जलती अयालों वाले सुनहले शेर
गुर्राते हुए जंगल छोड़ रहे हैं
ऐसे में
ठीक नहीं
बस्ती छोड़कर
भागना उधर
पर भागता
भागता चला जा रहा है
लाठी फटकारता
लँगड़ा राजा
सामने से सरकता आया है
एक कछुआ
झुकाई देकर कूदता है जो
और राजा के पुट्ठे से चिपक जाता है
सब कुछ दिख रहा है
जलते पेड़ों की रोशनी में
दिन भी है रात
इस अँधी रोशनी में
काँपते हुए उठते हैं
सर-कटे धुएँ के
लहराते पेड़
चटख़-चटख जलते हैं
पर-कटे धुँए के
पिघलते गँधाते पेड़
और जाँघ पर चिपके हुए कछुए को लिए
पगलाया अँधा राजा
'...आग लगी' के शोर में
बस्ती का कुहराम भूल
अपने नन्हें खरगोश की तलाश में
टूटी लाठी फटकारता
जंगल की तरफ
भागता चला जाता है
भागता चला जाता है।
</poem>