598 bytes added,
10:48, 12 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=मनखान आएगा /अवतार एनगिल
}}
<poem>अपने कमण्डल को उल्टा कर
भिक्षु ने अपने सर पर डाल लिया
जाड़े की किटकिटाती रात में
ठिठुरता हुआ भिक्षु
एक अलाव के पास रुका
तो उसके गेरुआ वस्त्रों ने
आग पकड़ ली.
---सपना</poem>