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एक थी परी / अवतार एनगिल

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<poem>एक बार
पहली बार
जब एक ख़ूबसूरत परी
आसमान से ज़मीन पर उतरी
पहुंची एक बाग में
तलाश में अपने आदमजाद की

चारों ओर थी :
हरियाली
अंगूर की बेलें
सेंबों लदे पेड़
गेहूँ की बालियां
भेड़ों के मेमने
बाँसुरी टेरते छैल चरवाहे

जब दूसरी बार
परी सरज़मीन पर आई
तब आदमी एक गाँव में रहता था
पास ही
चाँदी-सा झरना बहता था
जो नदी के कानों में
जाने क्या कहता था

परी ने देखा
उस छोटे गांव को
बड़े गांव से जोड़ती थी नौकाएं
ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर
ठुमकती थी बैलगाड़ियां
फिज़ाओं में गूंजते थे
धरती के गीत
मन के मीत
आदमी के आँगन में
आँख-मिचौनी खेलते तेह
सूरज और चाँद

तीसरी बार
जब परी ज़मीन पर पहुँची
गाँव एक नगर था
नदी में मगर था
यहाँ तक कि नगर में भी मगर था

सिनेमाघरों
फुटपाथों
बस-स्टॉपों पर कुलबुला रही थी
आदम की औलाद
रसोईयों
स्नानागृहों,
बैठकों में
झुलसी पड़ी थीं
हव्वा की बेटियाँ
सरहाने पड़ी थीं
नींद की गोलियाँ

तब परेशान परी ने
अपने आदमज़ात की तलाश में
घरों के झरोंखों से झाँका
नगरों की
उगरों की सीख
धूल को फाँका


यहाँ- वहाँ थी
खांचेवालों की चिल-पों
गाड़ियों,बसों में बसी थी
पसीने की दुर्गन्ध
आदम-बू...आदम-बू


परी ने अपनी सपनीली आँखें झपकीं
देखा :
धरती अब भी चल रही थी
शाम अब भी ढल रही थी
पर थी यह एक उदास शाम

तब से अब तक
हर उदास शाम
यह परी धरती पर आती
यथार्थ से टकराती है
और पंख फैलकर
सातवें आसमान पर
अपने जादूगर के पास
लौट जाती है।
</poem>
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