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11:24, 12 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=मनखान आएगा /अवतार एनगिल
}}
<poem>जोगिया रेशम का लबादा ओढ़े
सफेद 'इच्छाबल'पर सवार
राजा मनखान
काले पर्वत की कच्ची सड़क पर
ऍड़-पर ऍड़ लगाए
मुतलाशी मनखान
मिट्टी के रंग की तलाश में
या उस मिट्टी की खोज में
जिसका कोई रंग नहीं
राजा के संग हैं
वफादार लशकर
पतली-कमर-वाले शिकारी कुत्ते
सेना के रथ,
हिनहिनाते दरबारी
खनकती सुराहियां
छलकती हुई सुरा के ढोल
लुढ़क गये जो
काले पहाड़ की कच्ची सड़क पर
पता नहीं चला
घुड़सवार मनखान को
विशाल वक्षाओं की छातियों पर
दहकते जिस्मों से फिसल कर
निना रंग की मिट्टी पर बहती है
नरभक्षी पेड़ों की छाल से बनी मदिरा
जिसे राजा मनखान अनदेखा करते हैं
बादल से धरती तक
कौंधती है--रोशनी की शमशीर
चीर जाती है जो
हब्शिन को,गले से नाभि तक
लुप्त हो चुकी है
विशाल-वक्षा गौर वर्णा बालाएं
फिर भी पर्वतों में गूंजती है
सराय की मालकिन की
विद्रुप हंसी
काले पर्वत के बीच
वही संकरा-सर्पीला रास्ता है
उड़ाए ले जा रहे हैं
जिस पर
राजा मनखान
अपना सफेद 'इच्छाबल'
एक बार फिर
मनखान को तलाश है
मिट्टी के रंग़ की
या उस मिट्टी की
जिसका कोई रंग नहीं।
</poem>