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12:28, 12 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=अन्धे कहार / अवतार एनगिल
}}
<poem>रचजब उन गलीज़ बौनों ने
अनेक कद्दावर यात्रियों की हत्या कर दी
तब सिन्दबाद को अहसास हुआ
कि भिनभिनाते पगले छुटकों से
न उलझने का उसका निर्णय
कितना सही था।
लड़ना ही पड़ा तो लड़ेगा,
मरना ही पड़ा तो मरेगा,
मार सका तो मारेगा भी
धधकती आँख वाले
भूख के उस विराट राक्षस को
जिसके आबनूस की जादुई लकड़ी से बने द्वारा वाले
महल के आंगन में
हर रोज़ जलता है---एक अलाव
और अलाव के पास रखी हैं
आदमी के दुःखों की छड़ें अनेक
जिनपर पिरोकर वह हर रोज़
आदमजात को भूनता है
और भूनकर खा जाता है
बावजूद इसके---आज सिंदबाद आश्वस्त है
क्योंकि उसने तय कर लिया है।
कि आज रात
सोये हुए राक्षस की बन्द आंख को
अलाव मे दहकाई छड़ से दाग़ देगा
सिंदबाद बौनों से नहीं,कद्दावर राक्षसों से जूझेगा ।
वह बौनों से नहीं,कद्दावर राक्षसोंसे जूझेगा॥ना यहाँ टाइप करें</poem>