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04:28, 15 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव कौशिक
}}
<poem>हुआ है कत्ल बहुत बेज़ुबान पत्थर का।
किया है किसी ने दर्ज बयान पत्थर का।
मैं संगतराश भी होता तो क्या बना लेता,
शहर में कोई नहीं कद्रदान पत्थर का।
अजीब बात है शीशे का शहर है लेकिन,
ये किसने बाँध दिया सायबान पत्थर का।
हमारी आँख ही पत्थर की हो गई वर्ना,
कहाँ हुआ है अभी आसमान पत्थर का।
अगर किसी ने छुआ तो पिघल उठेंगे सभी,
ये कह रहा हूँ न ले इम्तिहान पत्थर का।
</poem>