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जाना है दूर / रमानाथ अवस्थी

676 bytes added, 07:44, 15 सितम्बर 2009
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मन को वश में करो फिर चाहे जो करो। रोको मत जाने दो जाना है दूर
कर्ता वैसे तो और है जाने को मन ही होता नहीं,रहता हर ठौर लेकिन है कौन यहाँ जो कुछ खोता नहीं वह सबके साथ है दूर नहीं पास तुमसे मिलने का मन तो है मैं क्या करूँ?बोलो तुम उसका ध्यान धरो। फिर चाहे जो करो।कैसे कब तक मैं धीरज धरूँ।
सोच मुझसे मत बीते को पूछो मैं कितना मजबूर।हार रोको मत जीते को गगन कब झुकता जाने दो जाना है समय कब रुकता है समय से मत लड़ो। फिर चाहे जो करो। दूर
रात वाला सपनाअनगिन चिंताओं के साथ खड़ा हूँ यहाँ सवेरे कब अपनापूछता नहीं कोई जाऊँगा मैं कहाँ?रोज़ यह होता तन की क्या बात मन बेहद सैलानी है व्यर्थ क्यों रोता है कर नहीं पाता मन अपनी मनमानी है।डर दर्द भी सहे हैं हो कर के मशहूररोको मत मरो।जाने दो जाना है दूरफिर चाहे अब नहीं कुछ भी पाने को मन करताकभी कभी जीवन भी मुझको अखरतासांस का ठिकाना क्या आए न आएयह बात कौन किसे कैसे समझाए होना है जो करो।भी वह होगा ज़रूर।रोको मत जाने दो जाना है दूर।
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