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{{KKRachna
|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
}}
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मुझ ग़मज़दा के पास से सब रो के उठे हैं।
हाँ आप इक ऐसे हैं कि ख़ूश होके उठे हैं॥

मुँह उठके तो सब धोते हैं ऐ दीदये-खूंबाज़।
बिस्तर से हम उठे हैं तो मुँह धोके उठे हैं॥

</poem>