760 bytes added,
08:14, 16 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=सूर्य से सूर्य तक /अवतार एनगिल
}}
<poem>डस गई
अनमने एकांत को
भीड़ निरर्थकता की
व्यर्थ अनुभूतियां
दर्शन के बाद
हुईं शिथिल
होने का दर्द
प्रश्नों की भीड़
और अर्थों की पीड़ा
भाग रहे हैं
जन्म की तरफ
जन्म के पश्चात
पीड़ित मुस्कान
बू की सच्चाई
ख़ुश्बू की आहट।
</poem>