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09:38, 16 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=सूर्य से सूर्य तक / अवतार एनगिल
}}
<poem>दर्शक :
नटी री !
तेरे पथरीले अंगों की लोच
मेरे खुरदुरेपन का मंथन कर गई
कि तेरा कटाक्ष
शत्रु के व्यंग्य-सा
गहरे में चुभ गया
नटी री !
गहरी पुतली के काले सागर ने
तेरी पथरीली लोच
भोगी है पोर-पोर
कलाकार सूत्रधार तो शापित ऋषि है
हे नटी !
शापित का शाप
मेरा हर दाग ख़ूबसूरत कर गया
तुम अहल्या नहीं
वह गौतम नहीं
मैं नहीं चन्द्रमां
फिर भी यह झूठ
कितना सच्चा है।
सूत्रधार :
मंच से बाहर
भागने विस्तार
अनंत सच
पात्रों में रच
उन्हीं से अनभिज्ञ
उनके दु:ख को
अनकहे सुख को
सूत्रधार से ज़्यादा
किसने भोगा है ?
नकली की हकीकत का दर्द
सूत्रधार से ज़्यादा
किसने जिया है?
नटी :
इस मंच पर
सूत्रधार संग खड़ी नटी
स्वयं सिरजी अवज्ञा है
पारे की थरथराहट
आग की लपट
कामना की आंख
असीम अंधेरे की सुरंग
जिसका नहीं कोई आदि
नहीं कोई अंत
अनंत के यात्री !
कदम बढ़ाने से पहले
अपने 'मैं' की कूंजी
किसी को सौंपकर नहीं
सागर में फैंककर आना।
</poem>