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09:42, 16 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=सूर्य से सूर्य तक / अवतार एनगिल
}}
<poem>इन बेरंग दीवारों पर
रंग बिरंगे पोस्टर
अख़बारों
समाचारों
इश्तिहारों में
छिपे झूठ
सोचा मैंने :
मेरी पूंजी है मेरे हाथ
चेहरे के आगे तान
हाथों का आसमान
हो बैठूंगा सुरक्षित
नई पतलून पहन
बन विज्ञापन का माडल
छिपा चमड़ी की मुलायम पर्त तले
खुरदरे अहसास
गाया मैं
नगर की सड़कों से गुज़र उदास
चाय का प्याला मुझे पी गया
जूते ने पाठ पढ़ाया, खूब चलाया
और कमीज़ ने मुझे गिरवी रख दिया
इधर शाम ढले
नियोन झांकते इश्तिहार
इकाईयां बने मूर्ख अंक
तुम सच कहते हो
ऊँचे के तहखाने में
शून्य के जादू ने
रख दिये हैं गिरवी
अंकों के हाथ ।
</poem>