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आयातकार सलीब / अवतार एनगिल

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|रचनाकार=अवतार एनगिल
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<poem>
उस रात
जब दायरों के हरकारों ने
मुझे आयताकार सलीब पर लटका दिया
चाँदनी की चीख ने
मेरे अर्ध-गोलाकार दरवाज़े पर
दस्तक दी

मैंने खिड़की खोली
सामने शहर के चौक में
तिकोने फन वाली एक नागिन ने
चांदनी का सूरज डस लिया था

...
हां, चाँदनी का भी सूरज होता है।

तभी जाना था मैंने
कि रुपये के नोट
एक आयताकार सलीब है
जो आदमी को मरने नहीं देती
पर आदमी को मार देती है

कि यह अचूक फंदा
कुबेर का कुरूप चौखटा है
दायरों के हरकारों में घिरा
कुबेर कितना ख़ूबसूरत है
कुबेर कितना बदसूरत है ?

कुबेर इतना बदसूरत है
कि देखने नहीं देता
डसा-प्रसा सूरज
कुबेर इतना बहरा है
कि सुनने नहीं देता
चांदनी की चीख़
कुबेर इतना अंधा है
कि अनदेखी कर देता है
सूरज की हत्य

आयताकार फंदे पर लटका आदमी
खाता है
सोता है
हंसता है
रोता है
भागता है
रुकता है
और फिर अंधियारे गढ़ॆ में
कूद जाता है।
</poem>
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