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अगर मानो तो / माधव कौशिक

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|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव कौशिक
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<poem>अगर मानो तो अपने आपको बेज़ार मत रखना
दिल के सहन में जलते हुए अंगार मत रखना ।

बड़ी उम्मीद से दरवेश तेरे दर पे आया है
तू उसके हाथ पर अब कि दफ़ा इंकार मत रखना ।

खुले हों ज़ेहन तो फिर आसमां की छत ही काफ़ी है
घरों के सामने गिरती हुई दीवार मत रखना ।

मसीहा है न दुनिया में, न अब मंसूर है कोई
नए शहरों के चौराहों पे कोई दार मत रखना ।

सुना है चांद भी गिरकर भंवर में डूब जाता है,
कभी जलता हुआ दीपक नदी के पार मत रखना ।

सुना है चांद भी गिरकर भंवर में डूब जाता है
कभी जलता हुआ दीपक नदी के पार मत रखना ।

नहीं तो सर क़लम होने में कितनी देर लगती है
क़लम के सामने भूले से भी तलवार मत रखना ।

अधूरी चाहतों के अक्स भी पूरे नहीं होते
किसी की भी हथेली पर अधूरा प्यार मत रखना।</poem>
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