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{{KKRachna
|रचनाकार=माधव कौशिक
|संग्रह=अंगारों पर नंगे पाँव / माधव कौशिक
}}
<poem>हाल ख़स्ता है तुम्हारा इसमें कोई शक नहीं
पर तुम्हें फ़रियाद करने का ज़रा भी हक नहीं ।

छप नहीं किसी भी पत्रिका के पृष्ठ पर
आपका किस्सा बहुत, सच्चा है,सम्मोहक नहीं ।

राजपथ से दूर गंदी बस्तियों के बीच में
एक जनपथ है जहां पर कोई अवरोधक नहीं ।

छीन कर ले जाईए सारी मशालों को मगर
क्या हमारी हड्डियों में आग के चकमक नहीं ।

लोग कहते हैं अभी जंग जारी है मगर
इस खुले मैदान में तो एक भी खंदक नहीं ।

चाहे वो धर्मों के हों, दुनियां के या तहज़ीब के
आदमी बंधन में भी कहता है मैं बंधक नहीं।
</poem>
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