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मिलन / रंजना भाटिया

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{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
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<poem>कैसे बांधे...मन से मन की डोर
मैं एक दरिया की लहर ,चली मिलने सागर की ओर

दिल में बसे हैं जाने, कितने सपने सलोने
आंखो की लाली में दिखे ,प्यार की भोर
महके मेरा तन -मन जैसे केसर
जब दिल में जगे ,यादों का छोर

मैं एक दरिया की लहर ,चली मिलने सागर की ओर

खिले हुए हैं अरमानों के पंख सुहाने
मनवा बस खींचे तेरी ही ओर
कैसे पार लगाऊं अब यह रास्ता
कठिन बहुत है प्यार का हर मोड़
मैं एक दरिया की लहर , चली मिलने सागर की ओर ....</poem>
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