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18:08, 16 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>
फैली है खामोशी
सब तरफ़ छाया है
एक गहरा सन्नाटा ....
हवा भी जैसे ...
भूल गयी है लहराना
कुदरत पर ठहरा हुआ
है वक्त का कोई साया ..
मेरे सब लफ्ज़
तेरे हर चित्र भी,
आज जैसे ...
खामोश हो कर
गुम हो गये हैं
दिल के पुराने पन्नो में ..
टूट गयी है कलम
सूख गये हैं रंग
पर ...
दिल में
थरथराता
यह सन्नाटा
कह रहा है कि
कल यह ....
ज़रूर आग बन कर
काग़ज़ पर बहेगा ....
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