1,484 bytes added,
18:16, 16 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>
जीवन के हर पल में
बारिश की रिमझिम में ,
चहचहाते परिंदों के सुर में ,
सर्दी की गुनगुनी धूप में ,
हवाओं की मीठी गंध में
तुम ही तुम हो ....
दिल में बसी आकृति में
फूलों की सुगन्ध में ....
दीपक की टिम -टिम करती लौ में
मेरे इस फैले सपनो के आकाश में
बस तुम ही तुम हो .....
पर.....
नहीं दिखा पाती हूँ
तुम्हे वह रूप मैं तुम्हारा
जैसे संगम पर दिखती नहीं
सरस्वती की बहती धारा॥
सच तो यह है ....
ज़िंदगी की उलझनों में
मेरे दिल की हर तह में
बन के मंद बयार से
तुम यूं धीरे धीरे बहते हो
मिलते ही नजर से नजर
शब्दों के यह मौन स्वर
तुम ही तो हो जो ......
मेरी कविता में कहते हो !!
</poem>