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18:18, 16 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>एक कहानी ...
वो कहते रहे
मैं सुनती रही ,
रीते समय की धारा
यूँ ही बहती रही.....
एक कहानी ...
भीगा आँचल
कभी न सूखे
मन की व्यथा,
अब पहचाने कौन ?
एक कहानी .....
कैसे बीती रात
तारों के संग ..
चाँद जब निकले
तब पूछ लेना
एक कहानी .....
फ्राक पहने
गुडिया के घर से
इस घर तक
हर लम्हे को
सजाती रही
ख़ुद रही तलाश
एक घर की
अंत तक.....
एक कहानी ....
पैरों की
फटी बिवाई
दर्द जैसे
अब.....
दफ़न होने लगा है ...</poem>