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18:39, 16 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>ली अंगडाई
सर्दी ने ....
मौसम की
बुदबुदाहट में ...
हवा के
खिलते झोंकों से ..
बहती मीठी बयार से
फ़िर पूछा है ..
प्रेम राही का पता
खिलते
पीले सरसों के फूल सा
आँखों में ...
हंसने लगा बसंत
होंठो पर
थरथराने लगा
गीत फ़िर से
मधुमास का ..
अंगों में चटक उठा
फ्लाश का चटक रंग
रोम रोम में
पुलकित हो उठा
अमलतास ...
कचनार सा दिल
फ़िर से जैसे बचपन हो गया
कैसा यह बदला
रंग मौसम का
अल्हड सा
हर पल हो गया ।
</poem>