Changes

तब और अब / रंजना भाटिया

1,277 bytes added, 18:41, 16 सितम्बर 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना भाटिया |संग्रह= }} <poem>उम्र के उस नाजुक मोड़ प...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
|संग्रह=
}}
<poem>उम्र के उस
नाजुक मोड़ पर
जब लिखे गए थे
यूँ ही बैठे बैठे
प्रेम के ढाई आखर
और उस में से
झांकता दिखता था
पूरा ..
सुनहरा रुपहला सा संसार
रंग बिरंगे सपने..
दिल पर छाया खुमार
मस्तमौला सी बातें
दिल में चढ़ता -उतरता
जैसे कोई ज्वार

और .....
अब न जाने
कितने आखर..
प्रेम भाव से ..
रंग डाले हैं पन्ने कई ..
पर कोई कोना मन का
फ़िर भी खाली दिखता है
दिल और दिमाग की ज़ंग में
अभेद दुर्ग की दिवार का
पहरा सा रहता है ....

सोचता है तब मन
बेबस हो कर.....
तब और अब में
इतना बड़ा फर्क़ क्या है ।
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits