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51-60 मुक्तक / प्राण शर्मा

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प्राण शर्मा
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५१
देख के कितना दुख पहुँचा है मदिरालय के टूटे प्याले
टूटी खिड़की और दरवाज़े, दरवज़ों के टूटे ताले
ए साक़ी प्रतिबंध लगा दे मदिरालय में उपद्रवियों पर
केवल वे ही आयें इसमें जो हों मदिरा के मतवाले
५२
हम मधु के मतवाले इतना रम जाते हैं पैमाने में
इतना खो जात हैं मधु से अपने तन-मन बहलाने में
पीते और पिलाते मदिरा और मस्ती की रौ में बहते
आधी-आधी रात कभी हम कर देते हैं मयख़ाने में
५३
सपनों की दुनिया में सबकी पावन मदिरा धाम बसा है
मदिरा में सुख से जीने क इक सुन्दर पैगाम बसा है
उपदेशक जी, सिर्फ़ तुम्हीं तो नाम नहीं लेते ईश्वर का
हर पीने वाले के मन में राम बसा है, श्याम बसा है
५४
हम भी मग्न रहें मस्ती में तुम भी मग्न रहो पूजन में
हम भी जी लें अपनी धुन में तुम भी जी लो अपनी लगन में
उपदेशक जी, कैसा झगड़ा हम में और तुम में बतलाओ
हम भी रहें तल्लीन सुरा में तुम भी रहो तल्लीन भजन में
५५
अच्छा होता, पहले से ही साक़ी का मतवाला होता
मयख़ाने जाने का चस्का पहले से ही डाला होता
काश, सभी मस्ती के मंज़र पहले से ही देखे होते
शौक़ सुरा का पहले से ही या रब मैंने पाला होता
५६
लोगों को मुसकाते हरदम मधुशाला में जाकर देखो
मधु में घुलता हर इक का ग़म मधुशाला में जाकर देखो
उपदेशक जी, बात पे मेरी तुमको यदि विश्वास नहीं है
मस्ती और खुशी का संगम मधुशाला में जाकर देखो
५७
पीने वालों की महफ़िल में ख़ुद को उजियाले कहते हैं
नीरस दिखने वाले ख़ुद को मस्ती के पाले कहते हैं
हमने देखे और सुने हैं स्वांग रचाते कितने जन ही
मदिरा का इक प्याला पीकर ख़ुद को मतवाले कहते हैं
५८
धीरे-धीरे आ जायेगा गीत सुरा का गाना तुमको
धीरे-धीरे आ जायेगा जीवन को महकाना तुमको
अभी नये हो मधुशाला में मधु की चाहत रखने वालो
धीरे-धीरे आ जायेगा पीना और पिलाना तुमको
५९
खुशियों के बादल उड़ते हैं साक़ी बाला के आँचल में
गंध यहाँ बसती है वैसे बसती है जैसे संदल में
पण्डित जी, इक बार कभी तो मधुशाला में आकर देखो
मस्ती सी छायी रहती है मधुशाला के कोलाहल में
६०
जब मतवालों के प्याओं से प्याला टकराता है भाई
जब मदिरा का पान हृद्य में रंग अजब लाता है भाई
वक़्त गुज़र जाता है कितनी जल्दी-जल्दी मयख़ाने में
जब मस्ती का आलम पूरे जीवन पर आता है भाई</poem>
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