Changes

121-130 मुक्तक / प्राण शर्मा

2,754 bytes added, 19:01, 18 सितम्बर 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्राण शर्मा |संग्रह=सुराही / प्राण शर्मा }} <poem> ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=प्राण शर्मा
|संग्रह=सुराही / प्राण शर्मा
}}
<poem>
१२१
मधु से अपना मन बहला ले
मदमस्ती का जश्न मना ले
मेरी फ़िक्र न कर तू प्यारे
पहले अपनी प्यास बुझाले
१२२
सबसे प्यार अथाह करे वह
सबकी ही परवाह करे वह
सबका शुभचिन्तक है साक़ी
सबके सुख की चाह करे वह
१२३
साथ सुराबाले के से ले
पाप-कलुष सारे धो ले
मस्त फुहारों में मदिरा की
प्यारे तन-मन खूब भिगो ले
१२४
तू चुपचाप चले घर जाना
कोई क्लेश न घर में लाना
मदहोशी में मेरे प्यारे
बच्चे की मानिंद सो जाना
१२५
रात-दिवस मदिरा पीता है
मस्त हवाओं में जीता है
यह कमबख़्त हृदय ए प्यारे
फिर भी रीता का रीता है
१२६
ए मतवालो शाद रहो तुम
जीवन में आबाद रहो तुम
थोड़ी-थोड़ी पीते रहो तुम
हर ग़म से आज़ाद रहो तुम
१२७
मधुपान कराता है सबको
मदमस्त बनाता है सबको
एहसान सदा उसके मानो
साक़ी बहलाताहै सबको
१२८
कभी मस्ती कभी ख़ुमार प्रिये
कभी निर्झर कभी फुहार प्रिये
कबी रिमझिम-रिमझिम मेघों की
मदिरा के रंग हज़ार प्रिये
१२९
सबकी मस्ती की चाल रहे
मस्ताना सबका हाल रहे
साक़ी की दया से हर कोई
मदिरा से मालामाल रहे
१३०
जिसने मधुमय संसार किया
जिसने जीवन-उद्धार किया
हम उसके शुक्रगुज़ार बड़े
जिसने मधु-अविष्कार किया</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits