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05:43, 19 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=
}}
<poem>उनका हर एक बयान हुआ
दंगे का सब सामान हुआ
नक्शे पर जो शह्र खड़ा है
देख जमीं पे बियाबान हुआ
झोंपड़ ही तो चंद जले हैं
ऐसा भी क्या तूफ़ान हुआ
कातिल का जब से भेद खुला
हाकिम क्यूं मेहरबान हुआ
कोना-कोना घर का चमके
है जब से वो मेहमान हुआ
आँखों में सनम की देख जरा
कत्ल का मेरे उन्वान हुआ
एक हरी वर्दी जो पहनी
दिल मेरा हिन्दुस्तान हुआ</poem>