1,869 bytes added,
06:16, 19 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=
}}
<poem>मुख न खोलो गर जरा तो सब तेरा हो जायेगा
जो कहोगे सच यहाँ तो हादसा हो जायेगा
भेद की ये बात है यूँ उठ गया पर्दा अगर
तो सरे-बाजार कोई माजरा हो जायेगा
नेकदिल है वो भला है हुक्मरां पर है नया
इतना मत चाहो उसे वो बेवफ़ा हो जायेगा
इक जरा जो राय दें हम तो बनें गुस्ताख दिल
वो अगर दें धमकियाँ भी,मशवरा हो जायेगा
ये नियम बाजार का है जो न बदलेगा कभी
वो है सोना ,जो कसौटी पर खरा हो जायेगा
सोचना क्या ये तो तेरे जेब की सरकार है
जो भी चाहे,जो भी तू ने कह दिया,हो जायेगा
यूँ निगाहों ही निगाहों में न हमको छेड़ तू
भोला-भाला मन हमारा मनचला हो जायेगा
भीड़ में यूँ भीड़ बनकर गर चलेगा उम्र भर
बढ़ न पायेगा कभी तू,गुमशुदा हो जायेगा
तेरी आँखों में छुपा है दर्द का सैलाब जो
एक दिन ये इस जहाँ का तजकिरा हो जायेगा </poem>